जून की उस ढलती सांझ में पकिस्तान क्रिकेट टीम ने दुनिया फतह की. क्रिकेट के मक्का लॉर्ड्स की २२ गज की स्टेज के ठीक बीचों बीच अपने दोनों हाथ फैलाए शाहिद अफरीदी एक महानायक में तब्दील हो गए. पाकिस्तान की इस जीत और इस नए महानायक को हर किसी ने अपने तरीके से परिभाषित किया. किसी ने इसे इमरान खान की १९९२ की वर्ल्ड कप जीत से बड़ा बताया. कहीं इसे आतंक से जूझते पकिस्तान के लिये एक नयी शुरुआत की तरह देखा गया. और कहीं इस जीत में अपने टेलेंट की परिपूर्णता की ओर बढ़ते अफरीदी को पढ़ने की कोशिश हुई.
लेकिन यह सिर्फ पाकिस्तान की जीत नहीं थी. यहाँ अफरीदी ने अपने क्रिकेट को ही एक मुकम्मल मुकाम तक नहीं पहुँचाया. यहाँ ट्वेंटी ट्वेंटी क्रिकेट ने भी अपनी आखिरी ज़ंग जीत ली थी. इतिहास और परंपराओं का दामन थामे खड़े लॉर्ड्स में इस वर्ल्ड कप के सहारे ट्वेंटी ट्वेंटी क्रिकेट ने टेस्ट और वन डे के ठीक बराबर हासिल जगह पर अंतिम मुहर लगाने की शुरुआत की. लेकिन एक पखवाडे के बाद वो इन दोनों फोर्मेट से कहीं आगे पहुँच गया.
पाकिस्तान की उस खिताबी जीत के बाद से अब तक एक दो मौकों को छोड़ कहीं ट्वेंटी ट्वेंटी मुकाबला नहीं खेला गया. लेकिन टेस्ट से लेकर वन डे क्रिकेट के हर मुकाबले , खिलाडियों के हर फैसले को ट्वेंटी ट्वेंटी के आइने में पढ़ने की हर मुमकिन कोशिश हो रही है. अपनी चोट से जूझते एंड्रू फ्लिंटॉफ एशेज के बाद खुद को टेस्ट से अलग करने का फैसला करते हैं. लेकिन कई आलोचक उनके इस फैसले को आईपीएल से मिलते पैसे से जोड़ते हैं. गेंदबाजी के शिखर पर काबिज मुरलीधरन अगले साल टेस्ट से खुद को अलग करने का एलान करते हैं. इसे भी टेस्ट की जगह ट्वेंटी ट्वेंटी को तरजीह दिये जाने की उनकी सोच कहा जाता है.
एकबारगी मुरली और फ्लिंटॉफ के फैसलों में इस वजह को टटोलना सही भी लगता है. अमूमन क्रिकेटर ढलती उम्र में खुद को वन डे से अलग करते रहे हैं. लेकिन अपने अनुभव और जीवट को वो टेस्ट की स्टेज पर बखूबी इस्तेमाल करते रहे हैं. २००३ के वर्ल्ड कप से ठीक पहले स्टीव वॉ ऑस्ट्रेलिया वन डे टीम से अलग हो गए. अनिल कुंबले ने भी वन डे से विदा ली, लेकिन टेस्ट में अपनी जगह पर मजबूती से बने रहे. फिर यहाँ आज उम्र की ढलान पर या चोट से जूझते खिलाडी ही नहीं है, जो टेस्ट को किनारे कर आगे बना चाहते हैं. वेस्टइंडीज के कप्तान क्रिस गेल को ट्वेंटी ट्वेंटी के लिये टेस्ट क्रिकेट से अलग होने में कोई हिचक नहीं है. इंग्लैंड के पूर्व कप्तान कैविन पीटरसन भी आने वाले दस सालों में टेस्ट क्रिकेट को खत्म होते महसूस कर रहे हैं.
यहीं से बड़ा सवाल विस्तार लेता है. क्या ट्वेंटी ट्वेंटी की ग्लैमर भरी रफ़्तार के बीच टेस्ट क्रिकेट दम तोड़ देगा? नहीं. बिलकुल नहीं. टेस्ट क्रिकेट वन डे की आंधी में भी बना रहा. आज ट्वेंटी ट्वेंटी के तूफ़ान में भी वो जमा रहेगा. बीते दो दशक में भी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को छोड़ दे, तो वन डे के मुकाबले टेस्ट क्रिकेट लगातार स्टेडियम में अपने चाहने वालों की बाट जोहता रहा है. यहाँ वन डे क्रिकेट ने टेस्ट क्रिकेट के लिये आर्थिक पहिये का काम किया. वनडे की वजह से टेस्ट क्रिकेट में एक नयी रफ्तार आई। ज्यादा रन, ज्यादा विकेट, बेहतर फील्डिंग और मैच के ज्यादा नतीजों के रुप में टेस्ट क्रिकेट भी रोमांचक हुआ। अब ट्वेंटी ट्वेंटी इस काम को ज्यादा शिद्दत और मजबूती से करेगा.
दरअसल, असली खतरा तो वन डे क्रिकेट पर मंडरा रहा है. वनडे और टेस्ट के बीच कोई सिरा कल भी नहीं पकड़ा जा सकता था। लेकिन ट्वेंटी ट्वेंटी और वन डे एक दूसरे के बेहद करीब हैं. वन डे में जिस नतीजे तक पहुँचने के लिये आठ घंटे और १०० ओवर का इंतज़ार करना पड़ता था, ट्वेंटी ट्वेंटी वही काम तीन घंटे और 40 ओवर में पूरा कर डालता है. रफ़्तार में डूबी दुनिया में ट्वेंटी ट्वेंटी खेल भी है, मनोरंजन भी और बाज़ार भी. यह लगातार अपने दायरे का विस्तार कर है. नए दर्शक जोड़ रहा है. खिलाडियों में नए सपने जगा रहा है. फिर वनडे फॉर्मेट में लगातार बीच के ओवर दर्शकों में बोरियत जगाने लगे थे। उनमें रोमांच की जगह नीरसता आने लगी थी,और ट्वेंटी-ट्वेंटी ने इन्हीं ओवरों को दरकिनार कर पूरा मुकाबला रोमांच से भर दिया।
क्या आपको बेवन का नाम याद आता है !. वन डे क्रिकेट के सबसे बड़े मैच विनर को कितने लोग जानते हैं.! लेकिन यहीं आप नरेन्द्र हिरवानी का नाम याद किजिए. एक क्षण में लोग आपको उनके पहले टेस्ट में १६ विकेट के कारनामे को याद दिला सकते हैं. एक पारी में दस विकेट लेने वाले लीजेंड कुंबले के किस्से हर दूसरे क्रिकेट चहेते को जुबानी याद होंगे. शेन वॉर्न वर्ल्ड कप फाइनल में मैन ऑफ़ द मैच बनने वाले एकलौते स्पिनर हैं. लेकिन वॉर्न की यह उपलब्धि याद करने में मशक्कत करनी पड़ती है. हां, टेस्ट की स्टेज पर सचिन के साथ उनकी बेहतरीन ज़ंग कहानियों की शक्ल ले चुकी है. विवियन रिचर्ड्स से लेकर लारा को हम वन डे से पहले टेस्ट की स्टेज पर बेमिसाल खेल के लिये याद करते हैं. टेस्ट खिलाडी के स्किल और टेम्परामेंट का कड़ा इम्तिहान लेता है. यह १० या १२ गेंदों का खेल नहीं है, यहाँ चार पारी और पांच दिनों के संघर्ष के बीच आप अगर जीत के हकदार हैं तो जीतेंगे. यह शास्त्रीय संगीत की तरह है. बाज़ार के इस दौर में बहुत कुछ बदला है, लेकिन इसके चाहने वाले अपनी जगह बने हुए हैं.
दरअसल, आपकी जिंदगी में जो भी चीज़ एक खालीपन का अहसास कराए, वो कभी खत्म नहीं हो सकती. आज विज्ञापन की दुनिया को देखिये. हमारी जिंदगी में जिन टूटे रिश्तों को लेकर हम परेशान रहते हैं, उन्हीं को विज्ञापन का बाज़ार परदे पर जोड़ते दिखाई देता है. बेशक वो एक प्रोडक्ट बेच रहा होता है. लेकिन कहीं गहरे हमारे दिल को छूता हुआ चला जाता है. टेस्ट भी शास्त्रीय संगीत और रिश्तों की तरह क्रिकेट को डूब कर जीने वालों के लिये कल भी था.आज भी है. जरुरी यह है कि इसे बेहतर तरीके से परोसा जाए.
लेकिन कैसे? इसे लेकर पूर्व खिलाडियों और जानकारों में बहस छिडी है. वॉर्न जैसे लीजेंड सबसे पहले क्रिकेट कैलेंडर को दुरस्त करने की बात करते हैं. इनका कहना है की इस कैलेंडर में आईपीएल को अलग से जगह दी जाए. उनके मुताबिक तब देश और पैसे का सवाल खत्म हो जायेगा. यहीं संजय मंजेरकर और मंसूर अली खान पटौदी का मानना है की टेस्ट में भी ओवर सीमित कर देने चाहिए. कुछ टेस्ट चैंपियनशिप में टेस्ट के बने रहने की उम्मीद देखते हैं. कुछ इसे दिन रात के मुकाबलों में तब्दील करने की वकालत कर रहे हैं. लेकिन सवाल वही है कि क्या इससे टेस्ट क्रिकेट का आर्थिक पहिया घूमने लगेगा. हर तरह के फॉर्मेट में अपनी छाप छोड़ने वाले एडम गिलक्रिस्ट जैसे दिग्गजों का मानना है कि टेस्ट क्रिकेट के ढांचे से कम से कम छेड़छाड़ की जाए. उनके मुताबिक कल भी टेस्ट क्रिकेट में पैसे नहीं थे और आने वाले कल में भी नहीं मिलेंगे. इसीलिये जरुरी है कि ट्वेंटी ट्वेंटी के सहारे टेस्ट को जीवित रखा जाए. यहाँ के पैसे का आईसीसी जमीनी स्तर पर सही इस्तेमाल करे. उसे ऐसे डवलपमेंट प्रोग्राम में लगाए, जिसका इस्तेमाल जूनियर स्तर से फर्स्ट क्लास और टेस्ट क्रिकेट के लिये हो सके।
कहा जा सकता है कि खतरे में टेस्ट नहीं, बल्कि वन डे है. ऐसे में अगले महीने दक्षिण अफ्रीका में होने वाली चैंपियंस ट्राफी में कोई एक टीम ही खिताब तक पहुँचेगी. अफरीदी की तरह कोई एक खिलाडी उभार लेगा. लेकिन निगाहें इस खिताब, इस खिलाडी की उपलब्धि के पार इस सच को तलाशेंगी कि ५० ओवर का यह वन डे क्रिकेट कितना सफ़र तय करेगा.
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